प्रकाश - पुंज
अंबर ने सोना बरसाया ,
सागर ने आँचल फैलाया ,
सोने को उसमें सिमटाया ,
लहरों ने इक बंध लगाया ॥
सोने की इस चमक से ,
जगमग - जगमग हुआ है सागर ,
लहरों ने लहरा - लहरा कर ,
पूरे सागर को चमकाया ॥
मैंने चाहा भरूँ चमक को ,
अपने फैले आँचल में ,
यही सोचकर मैंने अपना ,
सागर में इक कदम बढ़ाया ॥
झुककर अंजलि भरी चमक से ,
पर वह खाली पानी था ,
आगे बढ़ फिर सोना पकड़ा ,
फिर भी मैंने भ्रम पाया ॥
चलती - चलती दूर गयी मैं ,
फिर भी ना सोना पाया ,
लहरें हँस - हँस कर बोलीं ,
भानु ने ये भ्रम उपजाया ॥
भानु तो अंबर में बैठा ,
देता सोने जैसे तार ,
वही तार नीचे आते तो ,
देख - देख वह मुस्काया ॥
मानव समझ रहा है सोना ,
वह तो जगमग किरणें हैं ,
धरा पे जाकर किरणों ने ,
प्रकाश - पुंज है चमकाया ॥
अंबर - सागर की सुंदरता ,
जग में प्रकाश भर देती है ,
इस प्रकाश ने ही तो ,
मानव नेत्रों को चमकाया ॥
अपने अंतर को देखो मानव ,
खोजो प्रकाश अपने मन में ,
मिल जाए जो प्रकाश - पुंज तो ,
फैला दो जग में माया ॥
अंबर ने सोना बरसाया ,
सागर ने आँचल फैलाया ,
सोने को उसमें सिमटाया ,
लहरों ने इक बंध लगाया ॥
सोने की इस चमक से ,
जगमग - जगमग हुआ है सागर ,
लहरों ने लहरा - लहरा कर ,
पूरे सागर को चमकाया ॥
मैंने चाहा भरूँ चमक को ,
अपने फैले आँचल में ,
यही सोचकर मैंने अपना ,
सागर में इक कदम बढ़ाया ॥
झुककर अंजलि भरी चमक से ,
पर वह खाली पानी था ,
आगे बढ़ फिर सोना पकड़ा ,
फिर भी मैंने भ्रम पाया ॥
चलती - चलती दूर गयी मैं ,
फिर भी ना सोना पाया ,
लहरें हँस - हँस कर बोलीं ,
भानु ने ये भ्रम उपजाया ॥
भानु तो अंबर में बैठा ,
देता सोने जैसे तार ,
वही तार नीचे आते तो ,
देख - देख वह मुस्काया ॥
मानव समझ रहा है सोना ,
वह तो जगमग किरणें हैं ,
धरा पे जाकर किरणों ने ,
प्रकाश - पुंज है चमकाया ॥
अंबर - सागर की सुंदरता ,
जग में प्रकाश भर देती है ,
इस प्रकाश ने ही तो ,
मानव नेत्रों को चमकाया ॥
अपने अंतर को देखो मानव ,
खोजो प्रकाश अपने मन में ,
मिल जाए जो प्रकाश - पुंज तो ,
फैला दो जग में माया ॥