मैं हूँ ?
हवा मैं हूँ ,
करो क्यूँ बंद मुट्ठी में ?
मैं सावन की बदरी हूँ ,
करो क्यूँ बंद मुट्ठी में ??
मैं गुल हूँ , गुलशन को ,
सजाती अपनी खुशबू से ,
करो क्यूँ , खुशबुओं को कैद ?
तुम यूँ अपने कमरों में ॥
मैं तितली हूँ , सजाती हूँ ,
बगिया को अपने रंगों से ,
करो क्यूँ मेरे रंगों को ?
कैद तुम यूँ अपने पिंजरे में ॥
पंछी हूँ मैं अंबर की ,
अंबर ही मेरा घर है ,
करो क्यूँ मुझको यूँ तुम कैद ?
अपने घर के पिंजरे में ॥
मैं कोयल की कुहुक हूँ ,
गूँजती हूँ आम्र बगिया में ,
मिला दो अपनी भी आवाज ,
तुम मेरी ही कुहुकों में ॥
सुरीला स्वर सजेगा ,
रंगों और खुशबुओं से ,
ये दुनिया तो सजेगी ,
प्यार और मीठी सदाओं में ॥
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