सिंदूरी आभा
सिंदूरी आभा फ़ैली है ,
नीले - नीले अंबर में ,
नीचे तक यह चमक मिली ,
सागर के उपरितल में ॥
लगा यूँ मानो चूनर ओढ़ी ,
नीले - नीले अंबर ने ,
सिंदूरी आँचल में जैसे ,
छिपाया खुद को अंबर ने ॥
नीचे सागर की चमक ने ,
दूर - दूर तक खुद को फैलाया ,
चमक मिली आँखों को तब ,
फ़ैली यह चमक मेरे मन में ॥
देख - देख कर ऐसी आभा ,
मन मेरा है डोलता ,
काश ऐसी आभा हो मुझमें ,
फ़ैली रहे जो इस मन में ॥
शीशे सा सागर चमके ,
दुनिया को भी चमकाए ,
ऐसी आभा देख - देख ,
उड़ते पंछी भी मुस्काएँ ॥
ऊपर नीचे चमक है फ़ैली ,
बीच में ये मेरा मन है ,
काश यूँ ही मन रहे डोलता ,
आभा के इस उपवन में ॥
सिंदूरी आभा फ़ैली है ,
नीले - नीले अंबर में ,
नीचे तक यह चमक मिली ,
सागर के उपरितल में ॥
लगा यूँ मानो चूनर ओढ़ी ,
नीले - नीले अंबर ने ,
सिंदूरी आँचल में जैसे ,
छिपाया खुद को अंबर ने ॥
नीचे सागर की चमक ने ,
दूर - दूर तक खुद को फैलाया ,
चमक मिली आँखों को तब ,
फ़ैली यह चमक मेरे मन में ॥
देख - देख कर ऐसी आभा ,
मन मेरा है डोलता ,
काश ऐसी आभा हो मुझमें ,
फ़ैली रहे जो इस मन में ॥
शीशे सा सागर चमके ,
दुनिया को भी चमकाए ,
ऐसी आभा देख - देख ,
उड़ते पंछी भी मुस्काएँ ॥
ऊपर नीचे चमक है फ़ैली ,
बीच में ये मेरा मन है ,
काश यूँ ही मन रहे डोलता ,
आभा के इस उपवन में ॥
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