हम दोनों
किसको पता था कि एक दिन ,
साजन का हाथ पकड़ ,
चलेंगे नए रास्ते पर ,
गाँव की ओर जाएँगे हम दोनों |
सड़कें थीं टूटी फूटी ,
पगडंडियाँ थीं कच्ची ,
मगर मस्ती में डूबे ,
उसी पर चलते गए हम दोनों |
पहुँचे हम गाँव में ,
वक्त था शाम का ,
झुटपुटा था ,संध्या रानी सब ओर थी ,
समय की सुंदरता में डूब गए हम दोनों |
तभी साइकिल की घंटी सुनाई दी ,
देखा डाकिया आया था ,
थैले में पत्र थे ,अनेक रंग - बिरंगे पत्र थे ,
अनेक हस्तलिखित पत्र ,अनेक लिखावट के पत्र ,
मोबाइल के ज़माने में ये पत्र ,
प्यार का इज़हार थे ,
उन पत्रों की प्यार भरी खुश्बु ,
में डूब गए हम दोनों |
तभी बूँदें टपकीं ,घने से बादलों से ,
सूखी ,तपती धरा की मिट्टी थी बहुत प्यासी ,
बूँदों ने जो मौसम बदला ,
धरा की प्यास कम हुई ,
उड़ी सोंधी सी खुश्बु ,
पत्रों की खुश्बु संग मिली ,
दोनों ने हवा को खुश्बुओं से महकाया ,
ख़ुश्बुओं से तरबतर हुए हम दोनों |
ख़ुश्बुओं से तरबतर हुए हम दोनों |
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