लकीरें भाग्य की
लकीरें भाग्य की हैं चमकतीं ,
लकीरें भाग्य की हैं दमकतीं ,
मगर उनसे ज्यादा चमकती हैं ,
मगर उनसे ज्यादा दमकती हैं ,
मेहनत की लकीरें ,परिश्रम की लकीरें |
तो सोच ले ऐ - मानव ,तुझे क्या चाहिए ?
तुझे कैसे चाहिए ? मेहनत से या भाग्य से ?
जब मेहनत होगी ,जब परिश्रम होगा ,
तभी तो भाग्य देगा ,तभी किस्मत जागेगी |
नहीं खाली बैठ ,करे जा तू मेहनत ,
नहीं खाली सोच ,करे जा तू परिश्रम ,
बदल दे अपने हाथों की लकीरें ,
बदल दे तू अपनी तकदीरें |
खुशहाली आएगी ,ये काली सी ऋतु जाएगी ,
मगर अब आगे तू ,
मेहनत से ना रुकना ,परिश्रम से ना झुकना |
चलना प्रकृति के बनाए कायदों पर ,
निभाना प्रकृति के बनाए नियमों को ,
ये जीवन तभी बनेगा सुंदर ,
ये जीवन तभी बनेगा मजबूत |
वरना ये काली सी ऋतु ,हर लेगी जीवन को ,
मिटा देगी इंसान के नामों - निशान को ,
बचा ले अपने अस्तित्व को ,
मिटा दे इस काली सी ऋतु को ,
बन दोस्त प्रकृति का ,कर मेहनत ,
कर परिश्रम और सजा अपना आशियाना |
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