राही
पूरब दिशा से एक राही आया ,
जग को अपनी रोशनी से चमकाया ,
पूरे जग में जीवन उपजाया ,
धूप ,हवा ,पानी पूरे जग में फैलाया |
जीवन जो धरती पे फैला ,
उसने जग में मुस्कान को मुस्काया ,
उन्हीं मुस्कानों के जरिए ,
जीवन भी खिलखिलाया |
कहीं बने समंदर गहरे ,
कहीं बने ऊँचे - ऊँचे पर्वत ,
गहराईयों में उपजा जीवन ,
ऊँचाईयों पर पहुँचाया |
कहीं रेतीली धरा थी ,
रेतीली धरा तो रेगिस्तान बन गई थी ,
मगर धरा पर ही बंधु ,
जंगल घना बनाया |
सभी जीव - जंतुओं ने ,
सुखमय और सुरक्षित रहने के लिए ,
जरूरतों के मुताबिक ही ,
अपना नीड़ बनाया |
ऐसा जग देखकर ,
राही भी मुस्कुराया ,
अपने फलते -फूलते जग में ,
प्यार अपना फैलाया ,
प्यार अपना फैलाया |
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