सिसकियाँ
एकांतवास मिलता है बंधु दिल के अंदर ,
दिमाग में तो शोर है ज्यादा ,
जिंदगी चाहती क्या है ?
शोर या एकांतवास की शांति |
ऊँचाई पर पहुँचा है मानव ,
मगर क्या सफलता है पाई ?
हर ओर के रस्ते हैं बंद ,
कहीं कोई ख़ुशी ना भाई |
बंद है मानव अपने बनाए किले में ,
दीवारें ऊँची उसकी हैं भाई ,
खाईयाँ खोद रखीं मानव ने ,
जीवन में ये कैसी घड़ी आई ?
मानव ने ये बीज कैसे बोए ?
जिसका फल आज भोग रहा भाई ,
अब काटने हैं वही फल तो ,
जो वटवृक्ष लगाया है भाई |
अपने ही चेहरे को छुपाना पड़ा है ,
साँस लेना भी अब दूभर हुआ है ,
जिंदगी बन गई एक सजा है ,
मगर ये सब किस कारण हुआ है भाई ?
प्रकृति से ना की होती छेड़खानी ,
ऐसी जिंदगी ना पड़ती बितानी ,
किया अपना गुनाह ,खुद ही भुगत रहा है ,
मानव आज खुद ही सिसक रहा है |
ये सिसकियाँ तो बंधु कोई ना सुनने वाला ,
तभी तो लगा है दुनिया में ताला ,
मानव की निद्रा जब पूरी तरह खुलेगी ,
तभी तो बंधु ये ताला बंदी खुलेगी |
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