Sunday, December 26, 2021

SISKIYAAN ( JIVAN )

 

                   सिसकियाँ 

 

एकांतवास मिलता है बंधु दिल के अंदर ,

दिमाग में तो शोर है ज्यादा ,

जिंदगी चाहती क्या है ? 

शोर या एकांतवास की शांति | 

 

ऊँचाई पर पहुँचा है मानव ,

मगर क्या सफलता है पाई ? 

हर ओर के रस्ते हैं बंद ,

कहीं कोई ख़ुशी ना भाई | 

 

बंद है मानव अपने बनाए किले में ,

दीवारें ऊँची उसकी हैं भाई ,

खाईयाँ खोद रखीं मानव ने ,

जीवन में ये कैसी घड़ी आई ? 

 

मानव ने ये बीज कैसे बोए ? 

जिसका फल आज भोग रहा भाई ,

अब काटने हैं वही फल तो ,

जो वटवृक्ष लगाया है भाई | 

 

अपने ही चेहरे को छुपाना पड़ा है ,

साँस लेना भी अब दूभर हुआ है ,

जिंदगी बन गई एक सजा है ,

मगर ये सब किस कारण हुआ है भाई ? 

 

प्रकृति से ना की होती छेड़खानी ,

ऐसी जिंदगी ना पड़ती बितानी ,

किया अपना गुनाह ,खुद ही भुगत रहा है ,

मानव आज खुद ही सिसक रहा है | 

 

ये सिसकियाँ तो बंधु कोई ना सुनने वाला ,

तभी तो लगा है दुनिया में ताला ,

मानव की निद्रा जब पूरी तरह खुलेगी ,

तभी तो बंधु ये ताला बंदी खुलेगी | 

 

No comments:

Post a Comment