भाषा और भावना
जन्म लिया था जब हमने ,
सुनी थी भाषा माता की ,
वही शब्द थे हमने जाने ,
वही शब्द तो हमने पहचाने |
सुनी निरंतर वह भाषा ,
समझ में आई वह भाषा ,
बाद में दोस्तों वही भाषा ,
कहलाई हमारी मातृभाषा |
पढ़ने -लिखने में भी बंधु ,
वही सीखी -सिखाई मातृभाषा ,
मगर अनजानी ही रही ,
अलग -अलग प्रान्त भाषा |
मगर एक तरीका था ,
एक अलग चुनाव था ,
अनुवाद का ,उसी के जरिए ,
पढ़ीं ,अलग -अलग प्रान्त भाषा |
मातृभाषा से अलग बंधु ,
भाई हमें मातृभावना ,
भावना शब्द की गहराई में डूबे ,
भाई हमें हर रिश्ते की भावना |
भावना ,भाषा जैसी नहीं ,
इसका कोई अनुवाद नहीं ,
समझे हम इसको ऐसे ,
मानो दिल में समाई जैसे |
समझो ये तुम भी बंधु ,
हर रिश्ते की भावना को ,
कोई भी तुम्हें नहीं देगा ,
अनुवाद करके भावना को |
No comments:
Post a Comment