गले लगाएँ ( जलद आ ) भाग - 18
सात रंगों की रंगीनियाँ ,
फ़ैल गईं हैं बदरा के आँचल में ,
जग को रंगीं कर गईं ,
फ़ैल कर बदरा के आँचल में |
सात सुरों की गूँज तो ,
झंकृत कर गईं बीना के तारों को ,
स्वर अनेक भर गईं वह ,
कोयल की मधुर कूक में |
सात दिवसों का समय भी ,
सिमटा ग्रहों की बाहों में ,
नामों का सिमटा सिलसिला भी ,
उन्हीं के चमकते नामों में |
चाहे हों रंगों के बादल ,
चाहे उड़े रंगीन आँचल ,
चाहे स्वर की गूँज मीठी ,
कानों में रस घोल जाए ,
चाहे सप्त नाम दिन के ,
ग्रहों के साथ ही घूमें जाएँ ,
हम तो उस सातवें आसमां पे चढ़ ,
बदरा को अपने गले लगाएँ |
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