सुनहरी धूप
कितनी उधेड़बुन है जिंदगी में ,कभी छाँव तो कभी धूप ,
वो वो गर चाहे तो बदल सकता है ,जिंदगी का यह रूप |
तमन्ना है कि जिंदगी फिर से ,पहले सी हो जाए ,
मगर यह होगा तभी जब वो ,चाहे बदलना इसका रूप |
जीवन कब एक जैसा चलता है ,बदलता है उसका रूप ,
कंकरीले रास्ते हैं कभी ,तो कभी कालीन बिछे हैं खूब |
रात के अँधियारे छाए हैं कभी ,तो खिली है कभी धूप ,
कभी -कभी तो रात में ही ,खिल गई है चाँदनी अनूप |
भोर हुई तो रवि के दर्शन हुए ,बाद में तो तप गई है धूप ,
शाम के आँगन में आते ही ,फ़ैल गई है हल्की सुनहरी धूप |
उसी ने दर्द छिड़क दिया ,है पूरे जहान में ,
वही तो छिड़केगा दवा भी ,खाली करेगा दर्दों का कूप |
वही तो बदलेगा अँधियारों को ,उजियालों की भोर में ,
वही तो देगा सभी को ,प्यार का अनोखा स्वरुप |
तू भी हाथ थाम ले उसका ,ले सहारा उसी का ,
वही तो खड़ा करके तुझे ,देगा शक्ति भरपूर |
रंग जाएगा जीवन ,उसी के प्यारे से रंग में ,
उसी के प्यार में अगर ,तू जाएगा डूब |
काँच जैसी ये जिंदगी है ,हल्की सी चोट का भी खतरा है ,
बचा के रखना है इसे ,जिससे ये ना टूट जाए |
कलम से शब्द बिखरते जाते ,पन्नों पे संवर जाते हैं ,
इन्हें जोड़कर तू गीत बना ,खुश हो जाए सबका दिल खूब |
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