Thursday, March 3, 2022

SAMAY KAM ( JIVAN )

  

                          समय कम 

 

धरा हमारी प्यारी हमको ,जंगल ,नदियाँ ,

सब बसते हैं ,ऊँचे पहाड़ों के रस्ते हैं ,

जीव -जंतु सब रहते हैं ,कोई धरा पर ,कोई पानी में ,

मगर सभी अपनी ही रवानी में | 

 

कुछ पहाड़ों की ऊँचाइयों में ,कुछ सागर की गहराइयों में ,

कुछ को तो मैं भी जानूँ ,कुछ से मैं हूँ अनजानी ,

दुनिया सब की है ,सब वासी हैं इस दुनिया के ,

कुछ मुझसे अनजाने हैं ,कुछ से मैं हूँ अनजानी | 

 

पानी में कितने प्राणी रहते ? कुछ तो ऊँचे आकाश में उड़ते ,

दुनिया एक है हम सब जानें ,जीव -जंतु कुछ जाने पहचाने ,

दूर कहीं अंतरिक्ष में बंधु ,और जीव भी होते होंगे ,

वो हम सब को ना जानें ,हम भी ना उनको पहचानें | 

 

तारों भरे आसमां में ,ना जाने कितनी नजरें ? 

हमारी धरा को देखती होंगी ,हमें वो ढूँढती होंगी ,

हम भी तो ढूँढते हैं रात में ,किसी अपने जैसे को ,

किसी अलग से को ,काश हम जान पाते | 

 

पता नहीं ,क्या होगा ? समय केपर्दे में ,

नीले आकाश के छिपे खजाने में ? 

रचेता के रचे ब्रह्मांड में ,काश कोई ढूँढ दे ,

अपनी बची जिंदगी में हम जान पाएँ ,

किसी छिपे रहस्यों के पर्दे के पीछे की दुनिया ,

उम्मीद तो कम है ,हम लंबी जिंदगी पार कर चुके ,

आगे समय कम है ,आगे समय कम है | 


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