समय कम
धरा हमारी प्यारी हमको ,जंगल ,नदियाँ ,
सब बसते हैं ,ऊँचे पहाड़ों के रस्ते हैं ,
जीव -जंतु सब रहते हैं ,कोई धरा पर ,कोई पानी में ,
मगर सभी अपनी ही रवानी में |
कुछ पहाड़ों की ऊँचाइयों में ,कुछ सागर की गहराइयों में ,
कुछ को तो मैं भी जानूँ ,कुछ से मैं हूँ अनजानी ,
दुनिया सब की है ,सब वासी हैं इस दुनिया के ,
कुछ मुझसे अनजाने हैं ,कुछ से मैं हूँ अनजानी |
पानी में कितने प्राणी रहते ? कुछ तो ऊँचे आकाश में उड़ते ,
दुनिया एक है हम सब जानें ,जीव -जंतु कुछ जाने पहचाने ,
दूर कहीं अंतरिक्ष में बंधु ,और जीव भी होते होंगे ,
वो हम सब को ना जानें ,हम भी ना उनको पहचानें |
तारों भरे आसमां में ,ना जाने कितनी नजरें ?
हमारी धरा को देखती होंगी ,हमें वो ढूँढती होंगी ,
हम भी तो ढूँढते हैं रात में ,किसी अपने जैसे को ,
किसी अलग से को ,काश हम जान पाते |
पता नहीं ,क्या होगा ? समय केपर्दे में ,
नीले आकाश के छिपे खजाने में ?
रचेता के रचे ब्रह्मांड में ,काश कोई ढूँढ दे ,
अपनी बची जिंदगी में हम जान पाएँ ,
किसी छिपे रहस्यों के पर्दे के पीछे की दुनिया ,
उम्मीद तो कम है ,हम लंबी जिंदगी पार कर चुके ,
आगे समय कम है ,आगे समय कम है |
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