तभी तो
तड़पतीं पहाड़ियाँ , सिसकतीं पहाड़ियाँ ,
दे रहीं हैं आवाज़ , सुनो कोई !
दे रहीं हैं आवाज़ , सुनो कोई !
नहीं काटो , नहीं तोड़ो , बचालो , बचालो , बचालो हमें |
हमीं हैं सौंदर्य प्रकृति का ,
हमीं हैं जीवन वन्यों का ,
अगर हम को मिटाओगे ,
तो कैसे मुस्कुराओगे ?
जहाँ में हम नहीं होंगे ,
तो कैसे जंगल रखाओगे ?
वन्य पशुओं को खो कर के ,
वन्य सौंदर्य गँवाओगे |
नहीं फिर ठौर होगा बदरा का ,
थकन से बदरा टूट जाएगा ,
क्या थके - हारे बदरा से ,
तुम रिमझिम वर्षा पाओगे ?
थकन से चूर बदरा की ,
उदासी से भरी सखी दामिनी ,
क्या खोकर चंचला दामिनी को , तुम अपना जहां चमका पाओगे ?
उठो तोड़ो न पहाड़ियों को ,
नया जीवन दो वन्यों को ,
तभी तो सुन पाओगे तुम ,
गजराज की हुँकार ,
चिड़ियों की चह - चहकार ,
शेरों की ऊँची गर्जन ,
और नदिया का कल -कलनाद |