बदरा
बादलों के पंख पे होके सवार ,
चल पड़ी मैं आज तो सागर के पार |
रूई के फाहे से बदरा ,
धूप में चम - चम चमकते ,
हल्के - हल्के रेशमी से ,
सोने से मानो दहकते ,
लगते मानो पर्वत शिखर से ,
ले चले सरहद के पार |
चल पड़ी मैं आज तो सागर के पार |
धूप ढल जाते ही आयी ,
ठंडी शीतल चाँदनी ,
चाँद आया आसमाँ पे ,
फ़ैली चहुँ ओर चाँदनी ,
चाँदी से चमकीले बादल ,
छेड़े हैं दिल का सितार |
चल पड़ी मैं आज तो सागर के पार |
चाँदी की रंगत के बदरा ,
ले उठी मैं अँजुरी भर ,
रख दिया जब पाँव उन पर ,
हट गयी गुदगुदाने पर ,
पर न माने चंचल बदरा ,
छेड़ मन बीना के तार |
चल पड़ी मैं आज तो सागर के पार |
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