रात की दुल्हन
रजनी की आभा श्वेत चाँदनी सी ,
सिमटी है सुन्दरी जैसे मानिनी सी |
निशा बीत रही है यूँ धीरे - धीरे ,
चली हो धीमी पवन नदिया के तीरे ,
कुहकी हो कोयल अमराई में शालिनी सी |
सिमटी है सुन्दरी जैसे मानिनी सी |
चाँदनी में सिमटे हैं चमकीले तारे ,
ओढ़नी है दुल्हन की झिलमिल नज़ारे ,
चन्दा की चंदनिया बिखरी है रागिनी सी |
सिमटी है सुन्दरी जैसे मानिनी सी |
बीत चली रात और भोर हुई छम से ,
नयन तो नन्हें तृणों के भी नम थे ,
दुल्हन जैसी रजनी रवि के आगोश में ,
सिमट गयी ऐसे अलसाई कामिनी सी |
सिमटी है सुन्दरी जैसे मानिनी सी |
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