श्यामल बदरा
आये ,आये ,आये बादल , धूप में श्यामल से बादल ,
छा गए पूरी धरा पर , देखो हैं चहुँ ओर बादल |
ना दिखाई देता रवि है , ना ही गगन दिखता नयन को ,
सारी धरा सिमटी है , बदरा के आगोश में ,
सारा नज़ारा हो गया है , मानो बदरा - मय |
और बदरा हो गए हैं , मानो धरती का कवच ,
जो सुरक्षा दे रहा है , रवि की तीखी धूप में ,
नीचे है सागर गरजता , ऊपर से बदरा बरसता ,
हो गयी सूखी धरा , जलमय और जलमय |
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