उपजाऊ मन
मिट्टी में बोया जो बीज ,पानी से सींचा वो गया ,
फूटा अंकुर ,निकलीं पत्तियाँ ,धीरे -धीरे वो पेड़ बना |
धरा हमारी है उपजाऊ ,हरियाली उसमें पनपे ,
बीज कोई भी बोया जाए ,नए -नए पौधे उगते |
धरा जैसा ही मन है हमारा ,मन में तो विचार उगते ,
नफरत उसमें गई अगर ,तो नफरतों के पेड़ उगते |
डालो बीज प्यार ,प्रेम का ,खूब ही प्रेम उगाओ तुम ,
मन भर जाएगा प्रेम से ,उसको खूब लुटाओ तुम |
सबसे उपजाऊ है मन अपना ,सोच के उसमें डालो बीज ,
प्यार ,प्रेम की फसल बढ़े जब ,दुनिया नई सजाओ तुम |
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