Saturday, November 23, 2013

INTJAR SETU KA ( PREM )

                                  
           इंतज़ार  सेतु  का

    
    तारों से सजी चूनर ले ,
   उतर आया गगन धरा पर ,
    झिलमिल चूनर ओढ़ धरा भी ,
     सँवर गई दुल्हन बन ॥
   
   
   देखा जो सँवरा रूप  उस धरा का ,
    मोहित हुए नक्षत्र सारे ,
    ईर्ष्यालु हो गए , क्यूँ सँवरी धरा ,
      गगन की किस्मत बन ॥    
 
 
    हाथों में हाथ धरा - गगन के ,
    देखे सभी ने मगर ,
     मिलने नहीं देना चाहते थे ,
      दोनों को साथी बन ॥
  
 
    दोनों थे एक मगर ,
      दुश्मन थे   हजार ,
      कोशिशें मिलने की ,
      हो गयीं बेकार  ॥
 
 
    आये सभी बीच में ,
     दुनिया को लाए बीच में ,
     दोनों रह गए उस नयी ,
     दुनिया के दो किनारों पर ॥
  
 
     इंतज़ार है आज भी ,
     उस सेतु का जो ,
    मिला दे दोनों को ,
    सच्चा हमदर्द बन ॥     
  

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