कुटिया रवि की
बदरा के आँचल में सिमटा रवि ,
जा पहुँचा अपनी कुटिया में ,
कुटिया में घुसते ही रवि के ,
छाया है तिमिर इस दुनिया में ।
जगमग जुगनू चमक उठे ,
अंधकार की छाया में ,
अगणित बल्बों ने घेरा है ,
नन्हीं किरणों की माया में ।
किरणों के नन्हें जाले ,
उतराते रहे अंधियारे में ,
फैला गए प्रकाश नया ,
अंधियारी रात के साए में ।
धीरे - धीरे रात गुजरती ,
समय ने खिड़की खोली है ,
नहीं उजाला आया है ,
तारों की टोली बोली है ।
तारे झिलमिल - झिलमिल होते ,
रातों के साए घनेरे हैं ,
उन सायों के पार कहीं ,
उजियाले से छाए हैं ।
कुटिया का द्वार खुला है जब ,
रवि ने बाहर झाँका है ,
उजियाला फ़ैल गया जग में ,
तिमिर जहां से भागा है ।
बदरा के आँचल में सिमटा रवि ,
जा पहुँचा अपनी कुटिया में ,
कुटिया में घुसते ही रवि के ,
छाया है तिमिर इस दुनिया में ।
जगमग जुगनू चमक उठे ,
अंधकार की छाया में ,
अगणित बल्बों ने घेरा है ,
नन्हीं किरणों की माया में ।
किरणों के नन्हें जाले ,
उतराते रहे अंधियारे में ,
फैला गए प्रकाश नया ,
अंधियारी रात के साए में ।
धीरे - धीरे रात गुजरती ,
समय ने खिड़की खोली है ,
नहीं उजाला आया है ,
तारों की टोली बोली है ।
तारे झिलमिल - झिलमिल होते ,
रातों के साए घनेरे हैं ,
उन सायों के पार कहीं ,
उजियाले से छाए हैं ।
कुटिया का द्वार खुला है जब ,
रवि ने बाहर झाँका है ,
उजियाला फ़ैल गया जग में ,
तिमिर जहां से भागा है ।
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