कंदराएँ
बादलों की घाटियों में ,
घूमती हूँ मैं अकेली ,
चमकते रुपहले बदरा ,
दामिनी मेरी सहेली ।
रास्ते मुड़ते कहाँ पर ?
रास्ते जाते कहाँ से ?
लगती है देखो सखि ये ,
उलझी - उलझी सी पहेली ।
कंदराएँ बादलों की ,
मानो हो आवास मेरा ,
गुदगुदी जिसकी धरा है ,
गुदगुदी सी है हवेली ।
छिटकी रुपहली चाँदनी है ,
मानो सारी कंदरा में ,
रूप उजले बादलों का ,
करता है संग मेरे केलि ।
बदरा हैं कोमल और शीतल ,
दामिनी है जैसे ज्वाला ,
रंग दोनों का अनूठा ,
फिर भी हैं जैसे सहेली ।
बादलों की घाटियों में ,
घूमती हूँ मैं अकेली ,
चमकते रुपहले बदरा ,
दामिनी मेरी सहेली ।
रास्ते मुड़ते कहाँ पर ?
रास्ते जाते कहाँ से ?
लगती है देखो सखि ये ,
उलझी - उलझी सी पहेली ।
कंदराएँ बादलों की ,
मानो हो आवास मेरा ,
गुदगुदी जिसकी धरा है ,
गुदगुदी सी है हवेली ।
छिटकी रुपहली चाँदनी है ,
मानो सारी कंदरा में ,
रूप उजले बादलों का ,
करता है संग मेरे केलि ।
बदरा हैं कोमल और शीतल ,
दामिनी है जैसे ज्वाला ,
रंग दोनों का अनूठा ,
फिर भी हैं जैसे सहेली ।
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