नयनों के
खिड़की से झाँकते बदरा ,
गगन के हिंडोले में झूलते ।
पवन के साथ -साथ ,
कभी इधर थोड़े से ,
कभी उधर थोड़े से ,
हल्के रूई के फाहे से ,
नयनों को सुकूं सा देते ।
भानु की सुनहली रश्मियों से ,
चम - चम - चम चमकते ,
कुछ थे रुपहले से ,
तो कुछ थे सुनहरे से ,
नयनों को नई चमक देते ।
दिल ने चाहा भी ,
हाथ बढ़ा भर लूँ मुट्ठी में ,
ना था मुमकिन ये ,
आएँ बदरा मुट्ठी में ,
नयनों के गगन में ही रहे वो उतराते ।
खिड़की से झाँकते बदरा ,
गगन के हिंडोले में झूलते ।
पवन के साथ -साथ ,
कभी इधर थोड़े से ,
कभी उधर थोड़े से ,
हल्के रूई के फाहे से ,
नयनों को सुकूं सा देते ।
भानु की सुनहली रश्मियों से ,
चम - चम - चम चमकते ,
कुछ थे रुपहले से ,
तो कुछ थे सुनहरे से ,
नयनों को नई चमक देते ।
दिल ने चाहा भी ,
हाथ बढ़ा भर लूँ मुट्ठी में ,
ना था मुमकिन ये ,
आएँ बदरा मुट्ठी में ,
नयनों के गगन में ही रहे वो उतराते ।
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