रश्मियाँ
रवि ने ज्यों समेटा , जाल अपनी किरणों का ,
चमक उठे हैं झिलमिल तारे , गगना के आँगन में ।
सभी रंग बिखरे थे जो , फ़िज़ाओं में ,
सिमटे हैं सारे रंग , भानु की कुटिया में ।
दिन भर की थकावट लिए , भानु है सोया ,
मिल पाया है उसे विश्राम अब , अपनी ही कुटिया में ।
डिस्टर्ब न करे उसे कोई , इस बेला में ,
चंदा खड़ा है मानो , चौकीदार हो कोई ।
चंदा न हो गर सामने , तारे करेंगे शोर गुल ,
भानु न सो पाएगा , जग में अँधेरा छाएगा ।
करने लगे जो तारे शोर , चाँद ने समेटा उन्हें रुपहली चाँदनी में ,
शांति से सो गए सारे , उस रुपहली चाँदनी में ।
रात भर चंदा चमकता रहा , चाँदनी फ़ैली रही ,
जिंदगी ने मानो चाँदी सी , चमकती चादर ओढ़ ली ।
उषा की बेला में , भानु ने खोला द्वार ,
सारे जहां में रंग , बिखरते गए खुशियों के ,
जीवन मुस्कुरा उठा , रंगीन रश्मियों के बीच ।
रवि ने ज्यों समेटा , जाल अपनी किरणों का ,
चमक उठे हैं झिलमिल तारे , गगना के आँगन में ।
सभी रंग बिखरे थे जो , फ़िज़ाओं में ,
सिमटे हैं सारे रंग , भानु की कुटिया में ।
दिन भर की थकावट लिए , भानु है सोया ,
मिल पाया है उसे विश्राम अब , अपनी ही कुटिया में ।
डिस्टर्ब न करे उसे कोई , इस बेला में ,
चंदा खड़ा है मानो , चौकीदार हो कोई ।
चंदा न हो गर सामने , तारे करेंगे शोर गुल ,
भानु न सो पाएगा , जग में अँधेरा छाएगा ।
करने लगे जो तारे शोर , चाँद ने समेटा उन्हें रुपहली चाँदनी में ,
शांति से सो गए सारे , उस रुपहली चाँदनी में ।
रात भर चंदा चमकता रहा , चाँदनी फ़ैली रही ,
जिंदगी ने मानो चाँदी सी , चमकती चादर ओढ़ ली ।
उषा की बेला में , भानु ने खोला द्वार ,
रश्मियाँ
रवि ने ज्यों समेटा , जाल अपनी किरणों का ,
चमक उठे हैं झिलमिल तारे , गगना के आँगन में ।
सभी रंग बिखरे थे जो , फ़िज़ाओं में ,
सिमटे हैं सारे रंग , भानु की कुटिया में ।
दिन भर की थकावट लिए , भानु है सोया ,
मिल पाया है उसे विश्राम अब , अपनी ही कुटिया में ।
डिस्टर्ब न करे उसे कोई , इस बेला में ,
चंदा खड़ा है मानो , चौकीदार हो कोई ।
चंदा न हो गर सामने , तारे करेंगे शोर गुल ,
भानु न सो पाएगा , जग में अँधेरा छाएगा ।
करने लगे जो तारे शोर , चाँद ने समेटा उन्हें रुपहली चाँदनी में ,
शांति से सो गए सारे , उस रुपहली चाँदनी में ।
रात भर चंदा चमकता रहा , चाँदनी फ़ैली रही ,
जिंदगी ने मानो चाँदी सी , चमकती चादर ओढ़ ली ।
उषा की बेला में , भानु ने खोला द्वार ,
कुटिया से निकलने लगीं , अनगिनत रश्मियाँ बाहर ।
सारे जहां में रंग , बिखरते गए खुशियों के ,
जीवन मुस्कुरा उठा , रंगीन रश्मियों के बीच ।
कुटिया से निकलने लगीं , अनगिनत रश्मियाँ बाहर ।रवि ने ज्यों समेटा , जाल अपनी किरणों का ,
चमक उठे हैं झिलमिल तारे , गगना के आँगन में ।
सभी रंग बिखरे थे जो , फ़िज़ाओं में ,
सिमटे हैं सारे रंग , भानु की कुटिया में ।
दिन भर की थकावट लिए , भानु है सोया ,
मिल पाया है उसे विश्राम अब , अपनी ही कुटिया में ।
डिस्टर्ब न करे उसे कोई , इस बेला में ,
चंदा खड़ा है मानो , चौकीदार हो कोई ।
चंदा न हो गर सामने , तारे करेंगे शोर गुल ,
भानु न सो पाएगा , जग में अँधेरा छाएगा ।
करने लगे जो तारे शोर , चाँद ने समेटा उन्हें रुपहली चाँदनी में ,
शांति से सो गए सारे , उस रुपहली चाँदनी में ।
रात भर चंदा चमकता रहा , चाँदनी फ़ैली रही ,
जिंदगी ने मानो चाँदी सी , चमकती चादर ओढ़ ली ।
उषा की बेला में , भानु ने खोला द्वार ,
कुटिया से निकलने लगीं , अनगिनत रश्मियाँ बाहर ।
सारे जहां में रंग , बिखरते गए खुशियों के ,
जीवन मुस्कुरा उठा , रंगीन रश्मियों के बीच ।
सारे जहां में रंग , बिखरते गए खुशियों के ,
जीवन मुस्कुरा उठा , रंगीन रश्मियों के बीच ।
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