जन -- सेवक
मात -पिता ने जन्म दिया , बोलना -चलना सभी सिखाया ,
जीवन - रक्षक बने डॉक्टर , सबको है रोगों से बचाया |
गिरा या गाड़ी से टकराया , मानो टूटे अंग कई ,
तो दर्द -औ -अंगों की टूटन से ,डॉक्टर ने ही बचाया |
जन्मे रोग अगर अन्दर से , जाना उनको डॉक्टर ने ,
रोग दिखाई ना दे ऐसे , रोगों से भी हमें बचाया |
रफ़्तार बढ़ गयी अगर रक्त की , मानो या वह हो गयी कम ,
बढ़ती -घटती गति को भी तो , डॉक्टर ने ही सही कराया |
है दिमाग की उपज संतुलन , जो सब अंगों का काम चले ,
देखे रात में मीठे सपने , और दिवस का कार्य चले |
पढ़ा डॉक्टर ने दिमाग को , जान गया वह सपनों को ,
किया संतुलित सब अंगों को , जिससे मानव हुआ सुखी |
ऐसे जीवन - रक्षक , जन - सेवक , हर डॉक्टर को मेरा प्रणाम |
शत - शत प्रणाम | शत - शत प्रणाम |
No comments:
Post a Comment