सिखलाया
अपने आगोश में मुझको मचलना ,
तुमने सिखलाया ।
दर्द लेता न था अंगड़ाई कभी ,
मेरे पहलू में ,
सोए हुए उस दर्द को ,
पहलू मेंउस को तड़पना ,
तुमने सिखलाया ।
नहीं मचले थे मेरे अरमां कभी ,
मेरे सीने में ,
उनींदे से मेरे अरमानों को ,
सीने में मचलना ,
तुमने सिखलाया ।
रुकी थी मैं तो सदियों से ,
उस गुलिस्ताँ में ,
बहारों को हरेक रस्ता ,
उस गुलिस्ताँ का ,
तुमने दिखलाया ।
हर मेघ बरसा बरसों से ,
रोज सावन में ,
पर प्यार का सावन तो ,
मेरे आँगन में ,
तुमने बरसाया ।
अपने आगोश में मुझको मचलना ,
तुमने सिखलाया ।
दर्द लेता न था अंगड़ाई कभी ,
मेरे पहलू में ,
सोए हुए उस दर्द को ,
पहलू मेंउस को तड़पना ,
तुमने सिखलाया ।
नहीं मचले थे मेरे अरमां कभी ,
मेरे सीने में ,
उनींदे से मेरे अरमानों को ,
सीने में मचलना ,
तुमने सिखलाया ।
रुकी थी मैं तो सदियों से ,
उस गुलिस्ताँ में ,
बहारों को हरेक रस्ता ,
उस गुलिस्ताँ का ,
तुमने दिखलाया ।
हर मेघ बरसा बरसों से ,
रोज सावन में ,
पर प्यार का सावन तो ,
मेरे आँगन में ,
तुमने बरसाया ।
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