Friday, February 12, 2021

KADHI (HASYKAVY )

                  कढ़ी 


कढ़ी  रे कढ़ी ,तू कहाँ पे चढ़ी ?

कड़ाही से तू ऐसे ,कैसे उबल पड़ी ?


स्वाद से तो तू है चटपटी सी ,

पकौड़ियों में तू है लटपटी सी ,

मुँह में जो जाए ,घुलती सी जाए ,

चावलों के साथ तो ,तू खिल पड़ी |


रंग तेरा खिला ऐसा ,बसंत की बयार जैसा ,

खिलता सा रंग है ,स्वाद की उमंग है ,

तेरे जैसी तो ,कोई ना बूटी ,ना जड़ी |



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