Tuesday, April 12, 2022

GARJAN ( JALAD AA )

 

                             गर्जन  

 

कोसों दूर गगन में छाए ,कारे - कारे बदरा ,

रिमझिम - रिमझिम बरसेंगे ,तभी भीगेगा मेरा अँचरा | 

 

बदरा की रिमझिम से ,धरती हरी चुनर ओढ़ेगी ,

खुश होकर फिर धरा ,आशीष उसे दे देगी | 

 

बदरा भी फिर खुश होकर ,गगन में नाच दिखाए ,

संग दामिनी चमक -चमक कर ,साज बजाती जाए | 

 

बदरा की गर्जन से तो ,दिल की धड़कन बढ़ जाए ,

दामिनी की चमकार तो मुझ में ,हिम्मत बहुत बढ़ाए | 


रात की काली चादर में ,जग समस्त सो जाए ,

अंतरिक्ष में जगमग तारे ,बदरा में छिप जाएँ | 


लाखों तारों की चमक ,मेरे नयना चमकाए ,

मेरा चाँद तो मेरे पास है ,और मुझे क्या भाए ? 


बदरा की रिमझिम से तो ,अनवरत जल बरसा जाए ,

उससे प्रेरित मेरी लेखनी ,शब्द बरसाती जाए | 


शब्दों में दिल है छलकता ,भाव खूब दर्शाए ,

भावों भरी मेरी रचना ,दोस्ती खूब निभाए | 


बदरा की तो दोस्त दामिनी ,संगत खूब निभाए ,

मेरे  दोस्त तो आप सभी हैं ,जो हौसला  मेरा बढ़ाएँ | 


No comments:

Post a Comment