गर्जन
कोसों दूर गगन में छाए ,कारे - कारे बदरा ,
रिमझिम - रिमझिम बरसेंगे ,तभी भीगेगा मेरा अँचरा |
बदरा की रिमझिम से ,धरती हरी चुनर ओढ़ेगी ,
खुश होकर फिर धरा ,आशीष उसे दे देगी |
बदरा भी फिर खुश होकर ,गगन में नाच दिखाए ,
संग दामिनी चमक -चमक कर ,साज बजाती जाए |
बदरा की गर्जन से तो ,दिल की धड़कन बढ़ जाए ,
दामिनी की चमकार तो मुझ में ,हिम्मत बहुत बढ़ाए |
रात की काली चादर में ,जग समस्त सो जाए ,
अंतरिक्ष में जगमग तारे ,बदरा में छिप जाएँ |
लाखों तारों की चमक ,मेरे नयना चमकाए ,
मेरा चाँद तो मेरे पास है ,और मुझे क्या भाए ?
बदरा की रिमझिम से तो ,अनवरत जल बरसा जाए ,
उससे प्रेरित मेरी लेखनी ,शब्द बरसाती जाए |
शब्दों में दिल है छलकता ,भाव खूब दर्शाए ,
भावों भरी मेरी रचना ,दोस्ती खूब निभाए |
बदरा की तो दोस्त दामिनी ,संगत खूब निभाए ,
मेरे दोस्त तो आप सभी हैं ,जो हौसला मेरा बढ़ाएँ |
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