Saturday, April 16, 2022

RASON KAA SAAGAR ( KSHANIKA )

 

           रसों का सागर 

 

जन्म के साथ ही मिली ममता ,

माँ ने प्यार बरसाया ,

उस ममता में डूब के हमने ,

जीवन रस को पाया | 

 

ममता में ही डूबे - डूबे ,

दुनिया का नयापन आया , 

आश्चर्य - चकित हो उसको हमने ,

अद्भुत रस में पाया | 


उस आश्चर्य - चकित चमकार में ,

कभी - कभी भय पाया ,

कुछ चीजों के नए रूप ने ,

हमको खूब डराया | 


भय में ,डर में डूबे - डूबे ,

क्रोध कभी उपजाया ,

जब भय को दूर ना कर पाए ,

तो रस रौद्र बन आया | 


मन में रहा क्रोध तो वह ,

शोक बन कर सामने आया ,

उसी शोक ने अंदर ही से ,

रस को अब करुण बनाया | 


करुणा जब बढ़ चली बहुत ही ,

घृणा भी उपजी उससे ,

क्यों हम बढ़ चले ऐसी राह पे ? 

जिसने घृणा को उपजाया | 


तभी अचानक उपजी हिम्मत ,

उत्साह सा हममें जागा ,

पहना वीरों का चोला हमने ,

वीरता के रस को और जगाया | 


वीर बने हम और हमारा ,

श्रृंगार बनी हमारी वीरता ,

ऐसे में ही मिली हमें ,

उपहार स्वरूप हमारी प्रेरणा | 


जिसने प्रेरित किया हमें ,

हर पथ पर वीरता से चलने को ,

और उसी श्रृंगार भरी ,

प्रेरणा ने प्रेरित कर हमें जगाया | 


आज सभी कुछ सोच के हम ,

हँस पड़ते हैं बंधु ,

सारे रसों के बाद आज ,

हास्य रस जीवन ने उपजाया | 


जीवन बना रसों का सागर ,

हर रस की लहरें बहती हैं ,

कोई थोड़ी छोटी है ,

तो किसी को बड़ा बनाया | 


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