रसों का सागर
जन्म के साथ ही मिली ममता ,
माँ ने प्यार बरसाया ,
उस ममता में डूब के हमने ,
जीवन रस को पाया |
ममता में ही डूबे - डूबे ,
दुनिया का नयापन आया ,
आश्चर्य - चकित हो उसको हमने ,
अद्भुत रस में पाया |
उस आश्चर्य - चकित चमकार में ,
कभी - कभी भय पाया ,
कुछ चीजों के नए रूप ने ,
हमको खूब डराया |
भय में ,डर में डूबे - डूबे ,
क्रोध कभी उपजाया ,
जब भय को दूर ना कर पाए ,
तो रस रौद्र बन आया |
मन में रहा क्रोध तो वह ,
शोक बन कर सामने आया ,
उसी शोक ने अंदर ही से ,
रस को अब करुण बनाया |
करुणा जब बढ़ चली बहुत ही ,
घृणा भी उपजी उससे ,
क्यों हम बढ़ चले ऐसी राह पे ?
जिसने घृणा को उपजाया |
तभी अचानक उपजी हिम्मत ,
उत्साह सा हममें जागा ,
पहना वीरों का चोला हमने ,
वीरता के रस को और जगाया |
वीर बने हम और हमारा ,
श्रृंगार बनी हमारी वीरता ,
ऐसे में ही मिली हमें ,
उपहार स्वरूप हमारी प्रेरणा |
जिसने प्रेरित किया हमें ,
हर पथ पर वीरता से चलने को ,
और उसी श्रृंगार भरी ,
प्रेरणा ने प्रेरित कर हमें जगाया |
आज सभी कुछ सोच के हम ,
हँस पड़ते हैं बंधु ,
सारे रसों के बाद आज ,
हास्य रस जीवन ने उपजाया |
जीवन बना रसों का सागर ,
हर रस की लहरें बहती हैं ,
कोई थोड़ी छोटी है ,
तो किसी को बड़ा बनाया |
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