संध्या
दिन भी बीत चला है अब ,
आई है एक शाम नवेली ,
अस्त हो चला भानु अब तो ,
हुई है देखो शाम अलबेली |
भानु रश्मियाँ छिटक गईं गगन में ,
हुई है अब तो संध्या सुनहरी ,
लगा धरा ने भी ओढ़ ली है ,
सुंदर सी ओढ़नी सुनहरी |
मुस्कान बढ़ी धरा की अब तो ,
धीरे से दिन है ढला ,
भानु रश्मियाँ घटती गईं ,
तिमिर का राज बढ़ चला |
रोके कैसे तिमिर को कोई ?
भानु अपने घर को चला ,
भानु जब घर पहुँच गया ,
तो तिमिर रात में ढला |
तिमिर जब गहरा गया ,
तो चाँद गगन में खिला ,
धरा की ओढ़नी का रंग भी ,
चाँदनी के रंग में ढला |
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