Sunday, May 29, 2022

SANDHYAA ( KSHANIKA)

 

 

                  संध्या 

 

दिन भी बीत चला है अब ,

आई है एक शाम नवेली ,

अस्त हो चला भानु अब तो ,

हुई है देखो शाम अलबेली | 

 

भानु रश्मियाँ छिटक गईं गगन में ,

हुई है  अब तो संध्या सुनहरी ,

लगा धरा ने भी ओढ़ ली है ,

सुंदर सी ओढ़नी सुनहरी | 

 

मुस्कान बढ़ी धरा की अब तो ,

धीरे से  दिन  है ढला ,

भानु रश्मियाँ घटती गईं ,

तिमिर का राज बढ़ चला | 

 

रोके कैसे तिमिर को कोई ? 

भानु अपने घर को चला ,

भानु जब घर पहुँच गया ,

तो तिमिर रात में ढला | 

 

तिमिर जब गहरा गया ,

तो चाँद गगन में खिला ,

धरा की ओढ़नी का रंग भी ,

चाँदनी के रंग में ढला | 

 

No comments:

Post a Comment