बाँहों में
ऊपर क्यों रुका है चाँद ,
उत्तर आ मेरी बाँहों में ,
कभी तो तू भी आजा ,
दिल की धड़कनों की चाहों में |
माना गगन है घर तेरा ,
नीचे धरा की मैं वासी ,
शुरू से ही तू तो है ,
बसा मेरी निगाहों में |
झिलमिलाते नन्हें तारे ,
चाँद हैं वो सब साथी तेरे ,
हैं यहाँ सभी साथी मेरे ,
धरा की पनाहों में |
चाँद तू है बिंदी गगन की ,
धरा के हम फूल हैं ,
गगन में तू रूप भरता ,
धरा ने रखा हमें अपनी छाँवों में |
चाँद तेरी चाँदनी का आँचल ,
आज भी फैला धरा पर ,
हम सब ही आए हैं ,
चमकीले आँचल की पनाहों में |
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