बर्फ
श्वेत - श्वेत पर्वत खड़े ,
श्वेत बर्फ से लदे - फदे ,
सूरज की रोशनी को ,
पलट कर बिखराते ॥
चढ़ते कदम धीरे - धीरे ,
टेढ़ी - मेढ़ी राहों पर ,
पहाड़ी पेड़ों के बीच में ,
सुनकर पत्तियों की सरसराहटें ॥
पहुँच कर बर्फ में ,
कदम और धीरे चले ,
धँसते गए बर्फ में ,
बर्फ रही चरमराती ॥
कहीं बर्फ दबती रही ,
कहीं सिर उठा खड़ी रही ,
और कहीं खिलखिलाती सी ,
कदमों को फिसलाती रही ॥
हाथ बढ़े बर्फ पर ,
खिलखिलाई फिर बर्फ ,
खेले जो हाथ बर्फ से ,
सनसनायी फिर बर्फ ॥
हाथ मानो जम गए ,
पाँव फिसल - फिसल गए ,
फिर भी दिल इस बर्फ में ,
जैसे मचल - मचल गए ॥
रश्मियाँ रवि की बर्फ से ,
टकरा के जब हैं लौटतीं ,
रोशनी भरे पर्वतों को ,
अधिक रोशन हैं करतीं ॥
रोशनी का जैसे समंदर है ,
सर्द - सर्द सा समां है ,
इसमें आकर देखो तो ,
श्वेत वर्ण गुलशन है ॥
बर्फीले पहाड़ मानो ,
बोलते हैं सुनो तो ,
आते - जाते रहना राही ,
प्रेम धागा बुनो तो ॥
श्वेत - श्वेत पर्वत खड़े ,
श्वेत बर्फ से लदे - फदे ,
सूरज की रोशनी को ,
पलट कर बिखराते ॥
चढ़ते कदम धीरे - धीरे ,
टेढ़ी - मेढ़ी राहों पर ,
पहाड़ी पेड़ों के बीच में ,
सुनकर पत्तियों की सरसराहटें ॥
पहुँच कर बर्फ में ,
कदम और धीरे चले ,
धँसते गए बर्फ में ,
बर्फ रही चरमराती ॥
कहीं बर्फ दबती रही ,
कहीं सिर उठा खड़ी रही ,
और कहीं खिलखिलाती सी ,
कदमों को फिसलाती रही ॥
हाथ बढ़े बर्फ पर ,
खिलखिलाई फिर बर्फ ,
खेले जो हाथ बर्फ से ,
सनसनायी फिर बर्फ ॥
हाथ मानो जम गए ,
पाँव फिसल - फिसल गए ,
फिर भी दिल इस बर्फ में ,
जैसे मचल - मचल गए ॥
रश्मियाँ रवि की बर्फ से ,
टकरा के जब हैं लौटतीं ,
रोशनी भरे पर्वतों को ,
अधिक रोशन हैं करतीं ॥
रोशनी का जैसे समंदर है ,
सर्द - सर्द सा समां है ,
इसमें आकर देखो तो ,
श्वेत वर्ण गुलशन है ॥
बर्फीले पहाड़ मानो ,
बोलते हैं सुनो तो ,
आते - जाते रहना राही ,
प्रेम धागा बुनो तो ॥
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