झरना
झर - झर , झर - झर झरना बहता ,
आओ पास मेरे वह कहता ,
ऊँचे नभ से मानो झर कर ,
उतर धरा पर कल - कल बहता ॥
झर - झर , झर - झर झरना बहता ,
आओ पास मेरे वह कहता ,
ऊँचे नभ से मानो झर कर ,
उतर धरा पर कल - कल बहता ॥
अनगिनत पत्थरों से टकराता ,
धरा पे हरियाली बिखराता ,
जल मानो हो कर बेकल ,
कल - कल - कल का शोर मचाता ॥
धरा पे हरियाली बिखराता ,
जल मानो हो कर बेकल ,
कल - कल - कल का शोर मचाता ॥
जिसने भी सुनली यही पुकार ,
वही आ गया उस के पास ,
छूकर उसका निर्मल जल ,
नहीं दूर को जाने पाता ॥
वही आ गया उस के पास ,
छूकर उसका निर्मल जल ,
नहीं दूर को जाने पाता ॥
ठंडा , निर्मल , स्वच्छ सा नीर ,
झरने का आड़ा - टेढ़ा तीर ,
रुकते नहीं हैं मानो पग ,
कदम - कदम बढ़ता जाता ॥
झरने का आड़ा - टेढ़ा तीर ,
रुकते नहीं हैं मानो पग ,
कदम - कदम बढ़ता जाता ॥
ठंडे नीर ने किया है स्वागत ,
चलते जाते कदमों का ,
पाँव वहाँ जमते हैं जाते ,
बर्फ पिघल पानी आता ॥
चलते जाते कदमों का ,
पाँव वहाँ जमते हैं जाते ,
बर्फ पिघल पानी आता ॥
देख जमे से पाँव हमारे ,
झरना यूँ मुस्काता है ,
देखो मैं कितना बर्फीला ?
पर मैं ना ही जम जाता ॥
झरना यूँ मुस्काता है ,
देखो मैं कितना बर्फीला ?
पर मैं ना ही जम जाता ॥
निर्मल , स्वच्छ जल देता हूँ ,
झर - झर - झर झरता जाता हूँ ,
अँजुरी भर तुम पीलो मुझको ,
सबकी प्यास बुझाता हूँ ॥
झर - झर - झर झरता जाता हूँ ,
अँजुरी भर तुम पीलो मुझको ,
सबकी प्यास बुझाता हूँ ॥
धरा हरी हो जाती मुझसे ,
पानी लेती प्यास बुझाती ,
तभी तो इस सारी धरती पर ,
सदा ही हरियाली लहराती ॥
पानी लेती प्यास बुझाती ,
तभी तो इस सारी धरती पर ,
सदा ही हरियाली लहराती ॥
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