Sunday, March 28, 2021

NAZAREN (GEET)

 

           नजरें 


रेशम के कच्चे तारों से ,

कैसे बुन पाऊँगी ?

मैं अपने जीवन के जाल अधूरे | 


प्रणय , प्यार ना ,माँग सुहाग ,

कुछ भी नहीं मेरे सोए भाग्य ,

जिस ओर बढ़ी मैं लिए उम्मीद ,

वहीं दिया अपनों ने त्याग ,

बिखर गए मेरे सारे ,

हुए नहीं सपने पूरे | 


हर ओर एक ही सूनापन ,

हर तरफ एक वीरानापन ,

क्या इन्हीं में खो जाएगा ? 

मेरा पतझड़ सा ये जीवन ,

क्या कभी नजारा खुशियों का ?

देखेंगी नहीं मेरी नजरें | 


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