नजरें
रेशम के कच्चे तारों से ,
कैसे बुन पाऊँगी ?
मैं अपने जीवन के जाल अधूरे |
प्रणय , प्यार ना ,माँग सुहाग ,
कुछ भी नहीं मेरे सोए भाग्य ,
जिस ओर बढ़ी मैं लिए उम्मीद ,
वहीं दिया अपनों ने त्याग ,
बिखर गए मेरे सारे ,
हुए नहीं सपने पूरे |
हर ओर एक ही सूनापन ,
हर तरफ एक वीरानापन ,
क्या इन्हीं में खो जाएगा ?
मेरा पतझड़ सा ये जीवन ,
क्या कभी नजारा खुशियों का ?
देखेंगी नहीं मेरी नजरें |
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