तुम्हारे सामने
तुम्हें सामने पाके नजरें ,
उठीं मगर झुक गईं ,
तुम्हारी नजरें थीं ,चेहरे पर मेरे ,
आया पसीना ,ठंडी हवा में ,
कहा बोलने को ,होठों ने तेरे ,
लगी सोचने मैं ,बोलूँ मैं क्या ?
लव्ज़ खिल सके ना ,अधरों पे मेरे |
एक अर्से से ,सजाए थे सपने ,
तुम मिलोगे ,मुलाकातें होंगी ,
बातें होंगी ,देखेंगे तुम्हें जी भर के ,
पर जब तुम मिले ,
तो मुलाकातें हुईं ,बातें ना हुईं ,
देखा जरूर मगर ,जी भर के नहीं |
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