चंद्रमा ( प्रेयसी ) भाग -- 28
चाँदनी के आँचल में ,
लिपटी रात के ,
दर्द को ,कौन समझ पाया ?
सभी ने ,चाँद को समझा |
रात का टीका ,
और सोचा ,
गहने हैं सितारे ,
खड़ी है पहने ,
बाँहें पसारे |
पिया मिलन को आतुर ,
दिन ,जो पिया था रात का ,
जो बेखबर था उससे ,
जा मिला उषा से ,
और कभी संध्या से |
जाने के बाद उनके ,
सोचा चलूँ घर ,
मनाऊँ ,रूठी प्रेयसी को ,
पर फिर,देर हो चुकी थी ,
रात तो तब तक ,
दुल्हन बन सन्नाटे की ,
सो चुकी थी |
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