ज़ुल्फ़ें
जुल्फ़ें खुली हुईं हैं ,
तुम ही इन्हें सँवारो ,
रातों की चाँदनी को ,
तुम ही जरा निखारो |
सारा जहां है सोया ,
सपनों में है वो खोया ,
दिल मेरा डूबा जाता ,
तुम ही उसे उबारो |
उजली सी चाँदनी भी ,
फैली है इस धरा पर ,
चेहरे पे बिखरी जुल्फ़ें ,
तुम ही इन्हें सँवारो |
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