चाँद का संदेसा
आया है संदेसा चाँद का सखि ,कहा उसने ,
" चमका हूँ मैं आकाश में सखि ,बाहर आ ,
कुछ बातें कर लें हम दोनों ,साथ में सखि | "
" आज तो मैं पूरा गोल हूँ चमका ,
मेरा पूरा रूप है ,आकाश में दमका ,
चाँदनी मेरी फैली है खूब ,तेरे पास में सखि | "
" मेरी चाँदनी में तुम भी नहा लो आज ,
कुछ देर तो छुट्टी लो ,काम - काज से आज ,
वक्त दोस्त के साथ ,बिता लो जरा सखि |"
" हर रोज मेरा रूप बदल जाता है सखि ,
कभी छोटा ,तो कभी बड़ा ,हो जाता है सखि ,
आज तो पूर्ण हूँ मैं ,चाँदनी भी मेरी चमकीली है सखि ,
चमक जाओ नहा के ,मेरी चाँदनी में सखि | "
No comments:
Post a Comment