मेरी कमाई
होठों पे खिलने दो मुस्कान ,
मन में उगने दो नूतन गान ,
सुरों की छिड़ने दो मीठी तान ,
यही तो खरी कमाई है दोस्त |
देखो जब नव - पल्लव को तुम ,
रहो ना तुम तब गुमसुम ,
आँखों में चमक करे रुनझुन ,
यही तो खरी कमाई है दोस्त |
किसी रोते को हँसा दो तुम ,
सहारे का हाथ बढ़ा दो तुम ,
फूल मुस्कानों के खिला दो तुम ,
यही तो खरी कमाई है दोस्त |
चाँद से बातें करो अनटोक ,
सागर को बाँहों में भर लो ,
रवि को भोर में करो प्रणाम ,
यही तो खरी कमाई है दोस्त |
मेरी इस रचना को पढ़ लो ,
थोड़ी सी मुस्कान जगा लो तुम ,
अगर कुछ राय भी दे दो तुम ,
यही तो मेरी खरी कमाई है दोस्त |
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