संदेसा सागर का
सागर का संदेसा आया ,लहरें लेकर आईं हैं ,
उसने कहलाया है ,"घर से बाहरनिकल सहेली ,
मैं आया हूँ तेरे घर ,अपना प्यार लेकर के सहेली | "
" लहरें मेरी मचल -मचल कर ,आईं हैं साथ मेरे ,
वो भी दोस्त मेरी हैं ,देख रहीं हैं तेरा घर ,
तू ,मैं और मेरी लहरें ,मिल के गप्पें मारेंगे सहेली | "
" मेरा आँगन बहुत बड़ा है ,पानी - पानी भरा पड़ा है ,
रत्नों का भंडार जड़ा है ,जीवों से वह भरा पड़ा है ,
ऐसे ही बाहर से देखकर ,तुझे लगेगी बड़ी पहेली | "
" लहरें सब- कुछ जानती हैं ,तू उनसे ही बात करे तो ,
सब-कुछ समझा देंगी तुझको ,मेरे घर -अँगना के बारे ,
तू भी सब -कुछ समझ जाएगी ,सुलझा लेगी पूरी पहेली ,
क्योंकि हम दोनों तो हैं ,सखा -सहेली ,सखा -सहेली | "
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