फ़ोन किया सागर ने
फोन की घंटी बजी ,फोन जब उठाया तो ,
आवाज आई सागर की ,मेरे दोस्त की ,
क्या करती हो ? क्या समय नहीं मिला मिलने का ?
कल को ही आ जाओ सखि ||
मैंने भी स्नेहातुर हो ,कर दिया वादा ,
आऊँगी मैं कल सागर ,मिलूँगी तुम से ,
तुम अपनी लहरों को ,भेजना किनारे ||
अगले दिन मैं गई ,सागर से मिलने ,
लहरें वहीं किनारे पर थीं ,प्यार जताया मुझसे ,
मैं चली उनका हाथ पकड़ ,और सागर के बीच गई ||
खूब हुईं बातें ,खूब गूँजे ठहाके ,
समय बीतता गया ,और एक पहर बीत गया ,
लौटने का समय हो चला ,
और ख़ुशी में डूबी मैं लौट आई ||
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