Saturday, November 7, 2020

MILA BACHPAN ( RATNAKAR )

    मिला बचपन  ( रत्नाकर )


एक लड़की नादान सी ,शैतान सी ,

पहुँच गई उड़ते हुए बादलों के पार ,

ढूँढते हुए अपने नादान बचपन को ,

चाँद के देश में बादलों के पार |


बचपन तो पता नहीं कहाँ खो गया ?

सारी नादानियाँ अपने साथ ले गया ,

शैतानियों के साथ खिलखिलाहटें भी ले गया ,

बादलों के पार सूरजमुखी का बगीचा मिल गया |


बादलों से उतर कर चली नीचे को ,

सूरज की रश्मियों ने उजालों से भर दिया ,

समंदर की लहरों ने उछालों से भर दिया ,

सूरज और समंदर को मुस्कुराहटों से भर दिया |


समंदर के साथ रेत भी था दोस्तों ,

उसमें भी अनगिनत लहरें छिपीं थीं ,

मगर ये लहरें उछालों से ना भरीं थीं ,

सूखे - सूखे ,ऊँचे -ऊँचे टीलों से भरीं थीं |


पवन ने तेज होकर रेत को उड़ाया ,

रेत ने उड़ -उड़ कर बवंडर बनाया ,

तभी बादलों की समझ में बात आई ,

छाकर गगन में सूरज को छिपाया |


वर्षा को नीचे भेजा बवंडर को दबाया ,

तभी बचपन आया रेत का घरोंदा बनाया ,

घरोंदे को बनाकर लड़की ने उसको देखा ,

मुस्कुराहटों से उसने घरोंदे को सजाया | 




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