Wednesday, November 11, 2020

JALDHAR ( JIVAN )

                  जलधार


पहाड़ों का सीना चीरकर ,जलधारा झरी झर -झर ,

नाम मिला इस जलधार को, झरना कहा जलधार को,

जलधार थी बर्फीली ,बर्फ का पिघला स्वरूप ,

स्वच्छ जल की धार थी ,उसका स्वरूप था अनूप |


वो ना रुकी चट्टान से ,वो ना रुकी पहाड़ से ,

बहती गई लगातार ,रास्ता अपना बनाती गई ,

शीशे जैसी पारदर्शी ,शीशे जैसी स्वच्छ ,

चेहरा उस में देखकर ,कर सकते हैं मेकअप |


जलधार जब झरना बनी ,नीचे को वो गिरती गई ,

नीचे बही नदिया के जैसी ,आगे को बढ़ती गई ,

जिधर भी मिला रास्ता ,उधर ही वो बढ़ गई ,

उसके दोनों किनारों पर ,हरियाली छा गई |


मैंने तो जब उसको देखा ,दिल मेरा डोल गया ,

कदम बढ़े उस ओर को,जल में मेरा कदम गया,

ठंडी सी सिहरन से मैं,अंदर तक तब काँप गई,

मगर लंबी साँसें लेकर ,जल में मैं तो उतर गई |


खड़ी हो जल के अंदर ,दिल भी  मानो भीगा था ,

तनमन जल के अंदर थे,ख़ुशी का मानो सागर था,

ऐसी खुशी ना पाई थी ,पहले कभी ,पहले कभी ,

आज मिली है मुझको जो ,पहली - पहली बार |


आसपास की  हरियाली ,नई -नई सी ,सुन्दर सी,

दिया रूप उसने जलधार को ,सुंदर और प्यारा सा ,

जलधार थी पूरक हरियाली की ,

हरियाली थी शुक्रगुज़ार जलधार की,उस झरने की |


यही है दोस्तों प्रकृति ,स्वरूप है उसका अनोखा ,

प्रकृति खिल जाती है अगर ,उसे मिले एक मौका |




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