Tuesday, November 17, 2020

ULJHE DHAGE MOH KE ( PREM )

       उलझे धागे मोह के 


मोह के हैं जो रंग - बिरंगे धागे ,

उलझ -उलझ कर घूमते जाएँ ,

कैसे हम उनको अलग -अलग सुलझाएँ ? 


तारे भी कुछ उनमें फँस कर ,

जगमग उन्हें भी कर जाएँ ,

कैसे हम उनको अलग - अलग कर पाएँ ? 


सूखे गुलाब मिल गए किताबों में ,

सभी पंखुड़ियाँ बिखर गईं सी ,

कैसे हम उनको एक साथ जोड़ पाएँ ? 


जल परियाँ तो सिर्फ कहानियों में ,

मगर सभी करती हैं मोहित दिलों को ,

कैसे हम उनको हकीकत में देख पाएँ ? 


दीप जले तो गुम हुआ अँधियारा ,

सारे जग में छा गया उजियारा ,

आओ मिलकर हम सब ही मन के दीप जलाएँ ,

प्यार बाँट कर दुनिया में प्यार के दीप जलाएँ ,

मोह के रंगीन धागों में और भी उलझ जाएँ | 



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