उलझे धागे मोह के
मोह के हैं जो रंग - बिरंगे धागे ,
उलझ -उलझ कर घूमते जाएँ ,
कैसे हम उनको अलग -अलग सुलझाएँ ?
तारे भी कुछ उनमें फँस कर ,
जगमग उन्हें भी कर जाएँ ,
कैसे हम उनको अलग - अलग कर पाएँ ?
सूखे गुलाब मिल गए किताबों में ,
सभी पंखुड़ियाँ बिखर गईं सी ,
कैसे हम उनको एक साथ जोड़ पाएँ ?
जल परियाँ तो सिर्फ कहानियों में ,
मगर सभी करती हैं मोहित दिलों को ,
कैसे हम उनको हकीकत में देख पाएँ ?
दीप जले तो गुम हुआ अँधियारा ,
सारे जग में छा गया उजियारा ,
आओ मिलकर हम सब ही मन के दीप जलाएँ ,
प्यार बाँट कर दुनिया में प्यार के दीप जलाएँ ,
मोह के रंगीन धागों में और भी उलझ जाएँ |
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