दर्पण में बचपन कहाँ ?
दर्पण तो है आज बताता ,कैसे बताए कल की बात ?
आज दिखेगा दर्पण में ,छोड़ो कल की कल पर बात |
बचपन की गलियाँ छूट गईं,जिंदगी चल दी आगे-आगे,
वो गलियाँ अब देखें कैसे?बँधे जहाँ बचपन के धागे |
कुछ सखियाँ हैं साथ अभी ,कुछ को ढूँढे नयन मेरे ,
इतनी बड़ी दुनिया है बँधु ,उम्मीद बड़ी है मन में मेरे |
रुकता नहीं किसी का बचपन,उम्र तो आगे बढ़ती जाती,
तभी तो बँधु सफर में आगे ,बचपन की यादें हैं आतीं |
जीते हैं अब अपना बचपन ,बच्चों के संग खेल नए ,
उन्हीं की हँसी में हँसते हम ,उन्हीं में पाते बोल नए |
पकड़ नहीं पाते हैं हम ,बचपन को इन हाथों में ,
बस बचपन के खेल ही तो ,बच्चों को सिखाते जाते हैं |
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