Tuesday, November 10, 2020

KHOLO DWAR ( JIVAN )

                     खोलो द्वार

 

ऊपर बैठे कुम्हार ने ,माटी के पुतले बनाए ,

नीचे भेजा उनको ,उनमें प्राण जगाए ,

दुनिया में आकर वो खेले ,कूदे ,नाचे ,गाए ,

खुशियाँ फैलीं दुनिया में ,पुतले मानव कहलाए | 


उसी कुम्हार ने कुछ ,भिन्न आकार बनाए ,

उनमें से कुछ आकार तो ,मानव को लाभ कराए ,

लेकिन कुछ आकार तो ,मानव को सताएँ ,

ऊपर बैठे कुम्हार ने उनके ,इलाज नहीं बताए | 


छोटे -छोटे नुकसान तो,मानव भी सहता जाए ,

मगर कुछ नुकसान तो ,मानव को तड़पाएँ ,

उन्हीं में एक कोरोना है ,जो मानव को रुलाए ,

बिना मास्क के मानव ,घर से निकल ना पाए | 

 

मास्क पहन मानव तो ,शुद्ध हवा ना ले पाए ,

अपनी छोड़ी साँस ही मानव ,फिर अंदर ले जाए ,

कोरोना से बच जाने पर भी,मानव दूसरे रोग लगाए,

 अस्थमा जैसी बीमारी का ,वो शिकार बन जाए | 


अपना द्वार खोलो हे ईश्वर ,कोरोना वहाँ आ जाए ,

आज जो उसका रूप बना है ,सब को वह रुलाए ,

लाखों मानव उसके कारण ,काल के गाल में समाए ,

उसका रूप बदल दो ईश्वर ,सभी को लाभ पहुँचाए | 



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