खोलो द्वार
ऊपर बैठे कुम्हार ने ,माटी के पुतले बनाए ,
नीचे भेजा उनको ,उनमें प्राण जगाए ,
दुनिया में आकर वो खेले ,कूदे ,नाचे ,गाए ,
खुशियाँ फैलीं दुनिया में ,पुतले मानव कहलाए |
उसी कुम्हार ने कुछ ,भिन्न आकार बनाए ,
उनमें से कुछ आकार तो ,मानव को लाभ कराए ,
लेकिन कुछ आकार तो ,मानव को सताएँ ,
ऊपर बैठे कुम्हार ने उनके ,इलाज नहीं बताए |
छोटे -छोटे नुकसान तो,मानव भी सहता जाए ,
मगर कुछ नुकसान तो ,मानव को तड़पाएँ ,
उन्हीं में एक कोरोना है ,जो मानव को रुलाए ,
बिना मास्क के मानव ,घर से निकल ना पाए |
मास्क पहन मानव तो ,शुद्ध हवा ना ले पाए ,
अपनी छोड़ी साँस ही मानव ,फिर अंदर ले जाए ,
कोरोना से बच जाने पर भी,मानव दूसरे रोग लगाए,
अस्थमा जैसी बीमारी का ,वो शिकार बन जाए |
अपना द्वार खोलो हे ईश्वर ,कोरोना वहाँ आ जाए ,
आज जो उसका रूप बना है ,सब को वह रुलाए ,
लाखों मानव उसके कारण ,काल के गाल में समाए ,
उसका रूप बदल दो ईश्वर ,सभी को लाभ पहुँचाए |
No comments:
Post a Comment