द्वार की बगिया
मेरे द्वार के पार ,एक बगिया है दोस्तों ,
सूरजमुखी खिली है ,उसमें तो दोस्तों |
सूरज की किरणें ,उसको तपातीं हैं दिनभर ,
पर वो तो मुस्कुराती ,रहती है फिर भी दिनभर ,
नहीं उदास कभी वो ,होती नहीं है दोस्तों |
रंग है उसका पीला ,जैसे शगुन की हल्दी हो ,
सबके नयनों में वो ,चमक लाती है दोस्तों |
मैं कदम जब निकालूँ ,द्वार के बाहर को ,
तब वो मेरा अभिवादन ,करती है दोस्तों |
प्यार से जब उसे ,छू लूँ मुस्कुरा कर ,
तब वो और भी अधिक ,खिल जाती है दोस्तों |
देती है फायदा वो ,जाने ,अनजाने को भी ,
प्यार वो सभी में ,बाँटती है दोस्तों |
सूरजमुखी की महक तो ,द्वार से भी अंदर आती ,
उस महक से मेरा घर ,महका रहता है दोस्तों |
मेरे घर की पहचान ,वही सूरजमुखी बनी है ,
अनजान कोई भी मेरा घर तो ,ढूँढ लेता है दोस्तों |
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