Monday, December 14, 2020

DWAR KI BAGIYAA ( GEET )

    द्वार की बगिया


मेरे द्वार के पार ,एक बगिया है दोस्तों ,

सूरजमुखी खिली है ,उसमें तो दोस्तों |


सूरज की किरणें ,उसको तपातीं हैं दिनभर ,

पर वो तो मुस्कुराती ,रहती है फिर भी दिनभर ,

नहीं उदास कभी वो ,होती नहीं है दोस्तों |


रंग है उसका पीला ,जैसे शगुन की हल्दी हो ,

सबके नयनों में वो ,चमक लाती है दोस्तों |


मैं कदम जब निकालूँ ,द्वार के बाहर को ,

तब वो मेरा अभिवादन ,करती है दोस्तों |


प्यार से जब उसे ,छू लूँ मुस्कुरा कर ,

तब वो और भी अधिक ,खिल जाती है दोस्तों |


देती है फायदा वो ,जाने ,अनजाने को भी ,

प्यार वो सभी में ,बाँटती है दोस्तों |


सूरजमुखी की महक तो ,द्वार से भी अंदर आती ,

उस महक से मेरा घर ,महका रहता है दोस्तों |


मेरे घर की पहचान ,वही सूरजमुखी बनी है ,

अनजान कोई भी मेरा घर तो ,ढूँढ लेता है दोस्तों | 




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