( रानी परी )
पंख नहीं हैं मेरे ,कैसे उड़ आऊँ मैं ?
तू मुझे बुलाए बेशक ,पर उड़ ना पाऊँ मैं |
उधार के पंख तो ,पंछी से ले ना सकूँ मैं ,
कोई भी अपने पंख ,कैसे देगा भला ?
मोल तो उन पंखों का ,चुका ना पाऊँ मैं |
बिन पंख भी कोई उड़ता ,बस बदरा ही हैं ऐसे ,
बदरा तो उड़ते गगन में ,पंख नहीं हैं उनके ,
बिन पंखों के उनके जैसा ,कैसे उड़ पाऊँ मैं ?
पवन सखि है मेरी ,उसकी भी मजबूरी ,
ना पंख हैं उसके पास ,ना है उसको कोई आस ,
कैसे उड़ाए वो मुझको ,जबकि पंख ना उसके पास ,
ना मैं हूँ कोई तिनका ,जो पवन से उड़ जाऊँ मैं |
पंख अगर होते मेरे ,उड़ जाती मैं बदरा के पार ,
गगना में उड़ती रहती ,दिख जाती दुनिया अपार ,
दिलवा दे मुझको कोई ,दो दिन को पंख उधार ,
तो दो दिन के लिए ही सही ,रानी परी बन जाऊँ मैं |
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