पत्र माटी का
नमन वीरों को ,
सरहद के वीरों सुनलो ,पुकार देश की माटी की ,
मेरा तिलक लगा के पहुँचे तुम,भूमि रेखा पर सीमा की |
मुझ से तुमने जन्म लिया ,मैंने ही तुमको पाला ,
मैंने ही तो भरा तुम्हारी ,आँखों में उजाला |
मेरे ऊपर चलकर ही तुम ,चलना - फिरना सीखे ,
सभी खेल खेले मुझ संग ,कभी हारे ,कभी जीते |
बढ़ते -बढ़ते बने काबिल ,आज बने वीर सरहद के ,
संघर्षों से जूझ -जूझकर ,सीना तान खड़े सरहद पे |
आज समय आया है वीरों ,मेरा क़र्ज़ चुकाना है ,
सरहद पार के आतंकियों से ,तुमने मुझे बचाना है |
हाथ लगा ना पाए कोई ,गंदे ,नापाक इरादों से ,
तोड़ के रखना उन हाथों को ,बढ़ें जो गलत इरादों से |
पत्र लिखा है तुमको वीरों ,दिल की बात लिखी है ,
देश को गर्व है तुमपे वीरों ,माटी भी सलाम करती है |
जय जवान ,जय भारत ,
देश की माटी
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