दानवीर कर्ण
भारतीय हूँ मैं ,गर्व है मुझे ,
इस माटी में जन्म ,मिला है मुझे ,
जीवन इस हवा में ,खिलता रहा हरदम ,
स्वरों में जैसे ,गूँज गया हो स्वर पंचम |
इसी भारत में ,लिखा गया महाकाव्य ,
नाम जिसको मिला था महाभारत ,
जिसमें एक चरित्र था कर्ण ,
माता से त्यागा हुआ , पुत्र था वो कर्ण |
गरीबी में पला बढ़ा ,ज्ञान का था धनी ,
सभी शिक्षा सीखने में ,वह था प्रबल ,
मगर सभी समझते थे ,उसे दुर्बल ,
जब कि वह था ,सबसे ही सुबल |
भरी सभा में द्रौपदी ने ,सूतपुत्र कहा ,
ना ज्ञान उसका जाना ,ना मान उसका किया ,
कौरवों की सभा में भी ,अपमान जब हुआ ,
दुर्योधन ने ही उसे ,तब राजपद दिया |
युद्ध में जब पांडवों की ,हार होने लगी ,
त्यागने वाली माता ने ,रिश्ते की दुहाई दी ,
तब क्या यह उचित था ? उसके मन को भरमाना ,
क्या वही माता ,लौटा सकती थी उसका मान ?
छल तो इंद्र ने भी किया ,कर्ण के साथ ,
कवच ,कुंडल माँग लिए ,ब्राह्मण बन के ,
इंद्र ने यह सब किया ,पांडवों से मिल के ,
जिससे कर्ण ना उभरे ,बहुत शक्तिशाली बन के |
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