उमरिया
पल -पल घटती जाय उमरिया ,
क्यों दशकों के प्लान बनाय रे बंधु ,
लेकर आया जितना समय तू जग में ,
बढ़ता नहीं वह घटता ही है बंधु |
बढ़ती है तो ,वो है तृष्णा ,
तेरी इच्छा ,तेरी आशा ,तेरी उम्मीद ,
सबको बंद करदे तू डिब्बे में ,
तभी मनेगी रोज ही ईद |
चाहों की गठरी जो तेरी ,
जैसे तू चाहे ,कर्म बाँध ले ,
जब जाएगा वापस तू जग से ,
गिनती होगी तब कर्मों की ,
और जो होगा विधि की इच्छा ,
विधि की इच्छा ,विधि की इच्छा |
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