जिंदगी के स्वर्णाक्षर
हर दिन खुलता जाता है ,जिंदगी का एक पन्ना ,
हर पल गुजरते ही पढ़ पाते हैं हम ,
क्या लिखा था एक लाइन में ?
पूरे दिन के बीतने पर ही ,
पढ़ पाते हैं वह पूरा पन्ना |
क्या हम कर पाए ? क्या नहीं कर पाए ?
दिन बीत जाता है तभी ,यह सब याद आए ,
चलते ,रुकते ,यूँ ही तो दिन बीता जाए ,
कर्तव्य पथ पर हम ,कितना आगे बढ़ पाए ?
जिंदगी में बहुत से ,दोस्त हमारे साथ रहते ,
जिनमें से कुछ हमारी तारीफ़ करते ,
वो ,जो हमारी उन्नति से खुश होते ,
और कुछ हमारी गलतियाँ बताते ,
वो ,जो हमारी उन्नति में सहायता करते ,
दोनों तरह के ही तो ,दोस्त सच्चे हैं हमारे ,
जो हमारी जिंदगी की ,किताब में लिखे ,
स्वर्णाक्षर हैं ,स्वर्णाक्षर हैं ,स्वर्णाक्षर हैं |
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