Monday, May 1, 2023

DO GUNII ( KSHANIKA )

 

                       दो गुनी  


ख़ुशी छिपी है मन में तेरे ,फिर क्यूँ ढूँढे तू बाहर?

क्यों तू हाट में खोजे उसको?

क्यों ढूँढे जंगल - जंगल ? 

सबसे आसां रस्ता पकड़ के ,

ढूँढ ले तू मन के अंदर | 


खुशियों का जखीरा उपजा ,मानव तेरे ही अंदर ,

एक -एक कर बाहर निकाल ,

उपजेंगी मुस्कानें होठों पर | 


कल एक मुस्कान उगी थी ,उसे ही तू दो गुना कर ,

ऐसे ही मुस्कान उगेंगी ,

हर दिन दो गुनी हो होकर | 


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